'बिहार में फिर एक बार नीतीश कुमार सरकार', नतीजों के बाद अब नीतीश समर्थकों की जुबान पर यही नारा है. लेकिन इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प रहा. तमाम एग्जिट पोल गलत साबित हुए और नीतीश कुमार एंटी इनकंबेंसी फैक्टर के बावजूद कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. वहीं तेजस्वी यादव का सीएम बनने का सपना भी फिलहाल अधूरा रह गया. वो सबसे बड़ी सिंगल पार्टी होने के बावजूद हार गए.
तो बिहार की मशहूर लाइन 'एक बिहारी सब पृर भारी' आखिर किस पर फिट बैठती है? और इस चुनाव से क्या सीख मिलती है? विपक्ष को, चुनाव में शामिल तमाम राजनैतिक दलों को, और आगे नितीश 4.0 से क्या उमीदें लगाई जा सकती है? इन की-टेकअवेज और सबक के बारे में आज इस पॉडकास्ट में तफ्सील से बात करेंगे.
रिपोर्ट: फबेहा सय्यद
असिस्टेंट एडिटर: मुकेश बौड़ाई
म्यूजिक: बिग बैंग फज
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